अंग्रेज अफसर द्वारा बसाए ब्यावर शहर और उसके आस-पास के गांवों में पेयजल और सिंचाई के लिए अंग्रेज सरकार ने वर्ष 1872 में जिस फूलसागर का निर्माण कराया वह बनने के बाद महज चार बार ही लबालब हो सका। अंतिम बार इसकी चादर चली थी 45 साल पहले। इसकी वजह है इसका 12.50 वर्ग किलोमीटर का फैलाव। यहां वर्ष 2001 के बाद पानी की आवक नहीं हुई। बाद में इसकी आवक के रास्ते में अतिक्रमण और जगह-जगह एनिकट बनने की वजह से बरसों तक ब्यावर को पानी पिलाने वाला यह सागर खुद पानी को तरस गया। यदि इसकी आवक के रास्ते पर हुए अतिक्रमण को हटा दिया जाए तो यह ब्यावर और उसके आस-पास के गांवों के लिए बीसलपुर बांध का विकल्प भी बन सकता है।
मजबूती को ध्यान में रखते हुए इसकी नींव में सीसा भरा गया। बाद में पानी को आगे सप्लाई करने के लिए वर्ष 1952 में सरकार ने यहां कोयले से चलने वाली मोटर लगवाई। तब से ही ब्यावर और उसके आस-पास के गांवों में पानी की सप्लाई होने लगी। इससे पहले इसके पेटे में वर्ष 1914 में सेठ नथमल रांका के जन्मदिन पर एक कुएं का निर्माण कराया गया। इससे आज भी आस-पास के गांवों में पानी सप्लाई हाे रही है।
बीसलपुर बांध के बनने से पहले तक फूलसागर ही ब्यावर और उसके आस-पास के गांवों की प्यास बुझाता था। वर्ष 2002 में जलदाय विभाग ने यहां से पानी लेना कम कर दिया था। वर्ष 2006 में शिवनाथ पुरा और गणेशपुरा गावं में ही इसका पानी सप्लाई होता था। जवाजा के 199 गांवों को बीसलपुर का पानी पहुंचाने के लिए जो प्रोजेक्ट तैयार हुआ उसके लिए फूलसागर पंप हाउस को इस प्रोजेक्ट के लिए हैंड ओवर कर दिया गया। दौलतपुरा पंप हाउस से यहां तक पानी सप्लाई होगा। यहां से पानी आगे गांवों तक पहुंचेगा।
हम हो सकते हैं आत्मनिर्भर
आवक के रास्ते खोल दें तो हम बीसलपुर को भूल सकते हैं, इतना पानी रहेगा
कंठ सूखे तब याद आया
1950 में लगा पंप जो ब्यावर को करता था पेयजल सप्लाई।
फूलसागर
सेठ नथमल रांका ने वर्ष 1914 में निर्मित करवाया था कुआं।
आवक के रास्ते पर भारी अतिक्रमण हैं