भारतीय रेलवे की महत्वाकांक्षी याेजना डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर का लाभ ब्यावर और आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों के लाखों लोगों को मिलेगा। ब्यावर को देश के अन्य महानगरों कोलकाता, चेन्नई, मुंबई व अहमदाबाद से जोड़ने वाली इस महत्वाकांक्षी योजना के वर्ष 2019 के अंत तक पूरा होने की उम्मीद है।
जानकारी के अनुसार बाइस हजार करोड़ की परियोजना के तहत ब्यावर के समीप बांगड़ ग्राम में फ्रेट कॉरिडाेर का डिपो तैयार किया जा रहा है। इसका लाभ लोगों को रोजगार के अवसर के रूप में मिलेगा। इस महत्वपूर्ण परियोजना के लिए जगह-जगह पर मालगाड़ियों में सामान भरने और उतारने के लिए डिपो भी बनाए जा रहे हैं। ब्यावर में भी डिपो बनाना प्रस्तावित है। डिपो की जमीन चिन्हित करने के बाद उसका कार्य करीब करीब पूरा कर लिया गया है। ब्यावर में डिपो बनने से ना सिर्फ विकास में मदद मिलेगी बल्कि रोजगार के अवसर भी मिलेंगे और सबसे ज्यादा फायदा दम तोड़ रहे ब्यावर के मिनरल उद्योग को मिलेगा। बांगड़ ग्राम में इसके लिए अलग से स्टेशन बनाया जा रहा है। ब्यावर के समीप डब्ल्यूडीएफसी के कंस्ट्रक्शन संबंधित कार्य अगस्त तक पूरा हो जाएगा।
फ्रेट कॉरिडोर के जयपुर से गुजरात तक के बीच का सबसे महत्वपूर्ण भाग लोडिंग यार्ड डिपो ब्यावर में बन रहा है। इसको लेकर कंस्ट्रक्शन का काम कर रही कंपनी एलएनटी के कंस्ट्रक्शन मैनेजर शेलेंद्र सिंह ने बताया कि ब्यावर के समीप बांगड़ ग्राम में लोेेेेेेेेेेेेेेेेेेडिंग यार्ड बनाया जा रहा है। उन्होंने बताया कि 4.4 किलोमीटर के 6 जापानी ट्रैक बिछाए जाएंगे। ब्यावर के समीप बनने वाले लोडिंग यार्ड के लिए 4.4 किलोमीटर के 3 ट्रैक बिछाए जा चुके हैं। वहीं एक का कार्य किया जा रहा है। अब मैन ट्रैक और सपोर्टिंग ट्रैक बिछाने का कार्य भी जल्द शुरू किया जाएगा। हालांकि डीएफसीसी का कार्य मार्च 19 तक पूरा होना था। तकनीकी कारणों के चलते काम में देरी हो गई अब कंस्ट्रक्शन संबंधित कार्य तो अगस्त तक पूरा हो जाएगा और अगले साल मार्च तक डीएफसी ट्रैक पर टेस्टिंग ट्रेन भी चला दी जाएगी। उन्होंने बताया कि ट्रैक बिछाने का कार्य भी करीब करीब पूरा हो चूका है और सिर्फ 60 किलोमीटर ट्रैक बिछाना बाकी है। जिसका कार्य भी पूरा होने के करीब है।
गौरतलब है कि ब्यावर मिनरल हब है और ब्यावर इंडस्ट्रियल एरिया में 1 हजार से अधिक छोटी बड़ी मिनरल फैक्ट्रियां है। ब्यावर से मिनरल फैक्ट्रियाें का पाउडर गुजरात जाता है। माल भाड़े में हो रही वृद्धि और लगने वाले समय के कारण मिनरल उद्योग पर खतरा मंडरा रहा है। कई फैक्ट्रियां तो लंबे समय से बंद पड़ी हैं या बंद होने की कगार पर हैं। वर्तमान में मिनरल उद्योग सड़क मार्ग के भराेसे है। सड़क मार्ग से मिनरल उद्यमियों को जहां प्रति टन करीब 5 रुपए परिवहन भाड़ा देना पड़ रहा है और माल पहुंचने में भी 5 से 6 दिन लगते हैं। इसके साथ ही ट्रक या ट्रेलर में माल भी कम ही जा पाता है। वहीं यार्ड बनने के बाद कंटेनर में ना सिर्फ माल ज्यादा लदान किया जा सकेगा बल्कि करीब 2 रुपए टन माल भाड़े से महज 24 घंटे में उनका माल गुजरात पहुंच सकेगा।
अभी तक एक्सप्रेस, मेल और पैसेंजर रेल और मालगाड़ी एक ही रेलमार्ग पर चलती है। मालगाड़ियों के संचालन के कारण यात्री ट्रेनाें का संचालन प्रभावित रहता है। मालगाड़ियों को गंतव्य तक पहुंचने भी काफी समय लगता है और रेलगाड़ियां भी अक्सर देरी से चलती हैं। इसलिए रेलवे और केंद्र द्वारा मालगाडियों के लिए अलग से रेलमार्ग बनाने की योजना पर कार्य किया जा रहा है। पश्चिमी मालभाड़ा गलियारा (वेस्टर्न डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडार) का कार्य पूरा होने के करीब है। योजना का मुख्य उद्देश्य पैसेंजर ट्रेन ट्रैक को मालगाड़ियाें से मुक्त करना है।