चाइना उत्पादों से प्रतिस्पर्धा और मंदी की चपेट में आए मिनरल ग्राइंडिंग उद्योग को एक बार फिर परेशानी का सामना करना पड़ सकता है। इसकी वजह है बिजली दरों में बढ़ोतरी की संभावना। यदि दरें बढ़ती हैं तो अकेले ब्यावर मिनरल इंडस्ट्रीज पर ही सालाना करोड़ों रुपए का अतिरिक्त भार पड़ेगा। एक टन पाउडर के लिए मिनरल ग्राइंडिंग इंडस्ट्रीज को औसतन 400 रुपए की बिजली खर्च करनी पड़ती है। यदि एक रुपए प्रति यूनिट की दर से भी बढ़ोतरी होती है तो इसके लिए 400 की तुलना में 460 रुपए प्रतिटन के हिसाब से बिजली का बिल चुकाना पड़ेगा। उद्यमियों की मांग है कि सरकार उद्योगों को बढ़ावा देने के लिए सब्सिडी पर बिजली उपलब्ध कराए। जिससे मिनरल ग्राइंडिंग उद्योग को मजबूती मिलने के साथ ही यहां अन्य उद्योग भी स्थापित हो सके।
डिस्कॉम के आंकड़ों पर नजर डालें तो 45 करोड़ 88 लाख 12 हजार यूनिट सप्लाई होती है। इसमें से 40 करोड़ 82 लाख 16 लाख यूनिट की बिलिंग होती है जबकि शेष यूनिट छीजत या बिजली चोरी में चले जाते हैं। फिलहाल निगम का बिजली लोस 11.03 प्रतिशत है। जो अन्य क्षेत्रों की तुलना में बहुत कम है।
यदि बिजली की दर एक रुपए प्रति यूनिट भी बढ़ती है तो मिनरल ग्राइंडिंग उद्योग में उत्पादन पर करीब 15 प्रतिशत का भार अतिरिक्त पड़ेगा। साथ ही मिनरल उद्योग को करीब 29 करोड़ रुपए बिजली के बिल पर अतिरिक्त चुकाने पड़ेंगे। प्रतिटन 400 रुपए से उद्योगों को 460 रुपए प्रति टन खर्च करने होंगे।
इंडस्ट्री को औसतन 7 रुपए प्रति यूनिट के हिसाब से बिजली उपलब्ध हो रही है। इनमें एमआईपी श्रेणी में 7 रुपए प्रति यूनिट, एचपी श्रेणी में 7.30 रुपए प्रति यूनिट और एसआईपी श्रेणी में 6.45 रुपए प्रति यूनिट की दर से बिजली उपलब्ध होती है। इसके अलावा इन सभी श्रेणियों पर 40 पैसा प्रति यूनिट इलैक्ट्रिसिटी ड्यूटी और 15 पैसे प्रति यूनिट अरबन शेष के नाम से सरचार्ज भी लिया जाता है।
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